महावीर जयंती कब है 2023: जानें कैसे मनाते हैं, और इसका महत्व…
2023 में कब है महावीर जयंती
महावीर जयंती 2023 में मंगलवार, अप्रैल 4, 2023 को मनाया जाएगा।
जैन समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार महावीर जयंती है। इस दिन भगवान महावीर का जन्म हुआ था। वे जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान थे। जैन धर्म के अनुसार जो भावनाओं और इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, वही तीर्थंकर कहलाते है। भगवान महावीर ने अपने राज–पाट का त्याग कर के सन्यास का मार्ग अपना लिया था। राज परिवार में जन्म लेने का बावजूद महावीर स्वामी को उस जीवन में कोई रस नहीं था। 30 साल की उम्र में उन्होंने खुद को संसार से दूर कर लिया और आत्म कल्याण के रास्ते पर चल दिए थे। महावीर जयंती का पर्व भी जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा जन कल्याण के उपलक्ष्य में मनाया जाता है ।
ऐसे मनाई जाती है महावीर जयंती
महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों को सजाया जाता है। सजावट के साथ ध्वज लगाया जाता है। मंदिर मे पूजा–आराधना की जाती है। इसके साथ ही सोने और चांदी के कलश से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है। सभी जैन अनुयायियों द्वारा अहिंसा की शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं, पालकी बनाई जाती है। भगवान महावीर के जन्मदिन की खुशियां और बधाइयां दी जाती है। भगवान महावीर को भोग लगाने के बाद दान किया जाता है। साथ ही सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।
जैनियों के लिए सबसे शुभ दिनों में से एक, महावीर जयंती पर समारोह, दुनिया भर के समुदायों के बीच अलग–अलग होते हैं। आमतौर पर भगवान महावीर की मूर्ति को जुलूस या रथ यात्रा पर ले जाया जाता है। भक्त भगवान महावीर के योगदान की प्रशंसा में “भजन” का जाप करते हैं। फिर मूर्ति का औपचारिक स्नान या अभिषेक किया जाता है। भक्त समाज को वापस देने के प्रयास में धर्मार्थ कार्यों में भाग लेते हैं। वे उन मंदिरों में भी जाते हैं जो भगवान महावीर को समर्पित हैं और प्रार्थना सभाओं का आयोजन करते हैं। जैन समुदाय के पुजारी जैन धर्म को परिभाषित करने वाले पुण्य के मार्ग का प्रचार करने के लिए व्याख्यान देते हैं
महावीर जयंती का महत्व
जैन समुदाय द्वारा भगवान महावीर जयंती के अवसर को जैन दिवाली के रूप मे मनाया जाता है। कहा जाता है कि यह दिन मोक्ष प्राप्ति का है, क्योंकि स्वयं महावीर स्वामी ने इस दिन जन्म लिया और दुनिया को जीवन जीने का मंत्र दिया। इसलिए इस दिन की मान्यता बहुत बढ़ जाती है।
भगवान महावीर को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है। उनका जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के क्षत्रियकुंड में चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की 13वीं तिथि को हुआ था। वह 24वें और अंतिम तीर्थंकर (धर्म का उपदेश देने वाले देवता) थे।
भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांत
भगवान महावीर द्वारा अच्छे और सच्चे जीवन के लिए पंचशील सिद्धांत का निर्माण किया गया, जो इस प्रकार है:
सत्य: भगवान महावीर के अनुसार हमेशा सत्य बोलें और अपने जीवन में सत्य को शामिल करें।
अहिंसा: भगवान महावीर ने हमेशा अहिंसा का संदेश दिया है । उनके अनुसार मनुष्य को जीवन में हमेशा अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए।
अपरिग्रह: भगवान महावीर कहते है कि मनुष्य को किसी भी प्रकार की वस्तु से लगाव नहीं रखना चाहिए, और समय पर त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव।
ब्रह्मचर्य: महावीर भगवान कहते है कि एक ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति को विलासिता से दूर रहना चाहिए और अगर कोई शादीशुदा है तो अपने साथी के प्रति वफादार होना चाहिए ।
क्षमा: जीवन में सभी लोगों को माफ कर देना चाहिए, सभी जीवों से मित्रता का भाव रखना चाहिए और किसी से कोई बैर भावना नहीं होनी चाहिए।
भगवान महावीर का जीवन परिचय
महावीर स्वामी का जन्म राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला की तीसरी संतान के रूप में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम वर्धमान रखा गया था। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का उनका जन्मस्थान तब वैशाली के नाम से जाना जाता था।
वे जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (पार्श्वनाथ महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे) के अनुयायी थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान महावीर जब शिशु अवस्था में थे, तब इन्द्रों और देवों ने उन्हें सुमेरू पर्वत पर ले जाकर उनका जन्मकल्याणक मनाया था। महावीर स्वामी का बचपन अपने राजमहल में ही बीता था और जब वे युवावस्था में पहुंचे तो यशोदा नामक राजकन्या से वर्धमान का विवाह हुआ। इस दम्पत्ति की एक पुत्री हुई जिसका नाम प्रियदर्शना था। 28 साल की उम्र में उनके माता–पिता का देहांत हो गया था।
अपने बड़े भाई नंदीवर्धन के बहुत मनाने पर भगवान महावीर 2 वर्षों तक घर में रहें। महावीर स्वामी ने आत्मज्ञान की तलाश करने के लिए 30 साल की उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया था और वन मे चले गए थे। वन में जाकर उन्होंने दीक्षा ग्रहण की और बारह सालों तक कठोर ताप किया। तप करने के बाद ही भगवान महावीर को ‘कैवल्य ज्ञान’ की प्राप्ति हुई और वो तीर्थंकर कहलाए।
महावीर ने अपने इस समय के दौरान मे तप, संयम और साम्य भाव की उपासना की और पंच महाव्रत धर्म चलाया था। वे पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाते थे। अहिंसा के प्रतीक भगवान महावीर स्वामी जीवन के मायाजाल से परे थे। त्याग और तपस्या को ही वे महत्व देते थे। हिंसा, जातियों का भेदभाव जिस युग में बढ़ गया था, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया था। उन्होंने दुनिया को सत्य की राह पर चलने का पाठ पढ़ाया था। उन्होंने धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।
जैन धर्म के 24 तीर्थंकर के नाम
जैन धर्म में वर्णित 24 तीर्थंकरो के नाम इस प्रकार हैः
1.ऋषभदेव
2.अजितनाथ
3.सम्भवनाथ
4.अभिनंदन जी
5.सुमतिनाथ जी
6.पद्मप्रभु जी
7.सुपार्श्वनाथ जी
8.चंदाप्रभु जी
9.सुविधिनाथ
10.शीतलनाथ जी
11.श्रेयांसनाथ
12.वासुपूज्य जी
13.विमलनाथ जी
14.अनंतनाथ जी
15.धर्मनाथ जी
16.शांतिनाथ
17.कुंथुनाथ
18.अरनाथ जी
19.मल्लिनाथ जी
20.मुनिसुव्रत जी
21.नमिनाथ जी
22.अरिष्टनेमि जी
23.पार्श्वनाथ
24.वर्धमान महावीर