Dussehra 2021 Date: कब है दशहरा? जानें तिथि, महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त

नमस्कार दोस्तों आप सभी को स्वागत है ठाकुरप्रसाद कैलेंडर में इस साल दशहरा  2021  में  हिन्दू पंचांग के अनुसार दशहरा में  शुभ मुहूर्त, दशहरा कामहत्व ,शुभ तिथि , कन्या पूजा। …..

नवरात्रि  2021:

 पितृ पक्ष का प्रारंभ हुआ है, जो इस वर्ष 16 दिनों का है। यह 06 अक्टूबर को आश्विन अमावस्या को समाप्त होगा। इसके ठीक अगले दिन से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इस वर्ष भी ऐसा ही है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 07 अक्टूबर दिन गुरुवार से हो रहा है। इस दिन ही कलश स्थापना या घटस्थापना होता है और नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। जागरण अध्यात्म में आज हम जानते हैं ​शारदीय नवरात्रि 2021 के कैलेंडर के बारे में।

दशहरा का महत्व

दशहरा या विजय दशमी के दिन भगवान राम की अराधना की जाती है. इस राम का नाम जपने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. वहीं, इस दिन किसान नई फसलों का जश्न मनाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन हथियारों की पूजा भी की जाती है. योद्धा इस दिन हथियारों की पूजा करते हैं और ऐसा कर वह अपनी जीत का जश्न मनाते हैं.

शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ: 07 अक्टूबर, दिन गुरुवार।

घट स्थापना या कलश स्थापना: 07 अक्टूबर को।

घटस्थापना मुहूर्त: प्रात: 06 बजकर 17 मिनट से सुबह 07 बजकर 07 मिनट के मध्य।

मां शैलपुत्री की पूजा

नवरात्रि का दूसरा दिन: 08 अक्टूबर, दिन शुक्रवार।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा।

नवरात्रि का तीसरा दिन: 09 अक्टूबर, दिन शनिवार।

मां चंद्रघंटा पूजा। मां कुष्मांडा पूजा।

नवरात्रि का चौथा दिन: 10 अक्टूबर, दिन रविवार।

मां स्कंदमाता की पूजा।

नवरात्रि का पांचवा दिन: 11 अक्टूबर, दिन सोमवार।

मां कात्यायनी की पूजा।

नवरात्रि का छठा दिन: 12 अक्टूबर, दिन मंगलवार।

मां कालरात्रि की पूजा।

नवरात्रि का सातवां दिन: 13 अक्टूबर, दिन बुधवार।

कन्या पूजन: नवरात्रि में व्रत के साथ कन्या पूजन का बहुत महत्व होता है। जो लोग नवरात्रि के 9 दिनों का व्रत रहते हैं या फिर पहले दिन और दुर्गा अष्टमी का व्रत रखते हैं, वे लोग कन्या पूजन करते हैं। कई स्थानों पर कन्या पूजन दुर्गा अष्टमी के दिन होता है और कई स्थानों पर यह महानवमी के दिन होता है। 01 से लेकर 09 वर्ष की कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरुप माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा की जाती है।

माँ दुर्गा  नौ रूप विस्तार में 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

नवरात्रि उत्सव के दौरान देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान किया जाता है,एवं पूजा जाता है, जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।

माँ दुर्गा के 9 रूप विस्तार में :

  • शैलपुत्री
  • ब्रह्मचारिणी
  • चन्द्रघंटा
  • कूष्माण्डा
  • स्कंदमाता
  • कात्यायनी
  • कालरात्रि
  • महागौरी
  • सिद्धिदात्री

     

     

     

     

    शैलीपुत्र के पूजा विधि :

  • मां का ये स्वरूप बेहद ही शुभ माना जाता है। इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है और ये देवी वृषभ पर विराजमान हैं जो संपूर्ण हिमालय पर राज करती हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने के लिए इनकी तस्वीर रखें और उसके नीचें लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केसर से शं लिखें और मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। इसके बाद हाथ में लाल फूल लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप करें – ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:। मंत्र के साथ ही हाथ में लिये गये फूल मनोकामना गुटिका एवं मां की तस्वीर के ऊपर छोड दें। इसके बाद माता को भोग लगाएं तथा उनके मंत्रों का जाप करें। यह जप कम से कम 108 बार होना चाहिए।
  • मां शैलपुत्री का प्रसाद: मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का
  • इस मंत्र का करें जाप:
    वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
    वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
  • घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है जिससे व्यक्ति का मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है।
  • नव दुर्गा के दूसरे रूप का नाम है माँ ब्रह्मचारिणी।

    ब्रह्म का क्या अर्थ है?

    वह जिसका कोई आदि या अंत न हो, वह जो सर्वव्याप्त, सर्वश्रेष्ठ है और जिसके पार कुछ भी नहीं। जब आप आँखे बंद करके ध्यानमग्न होते हैं तब आप अनुभव करते हैं कि ऊर्जा अपनी चरम सीमा या शिखर पर पहुँच जाती है वह देवी माँ के साथ एक हो गयी है और उसी में ही लिप्त हो गयी है। दिव्यता, ईश्वर आपके भीतर ही है, कहीं बाहर नहीं।

    मां ब्रह्मचारिणी
    दूसरे नवरात्र में मां के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं।
    क्या चढ़ाएं प्रसाद

    मां भगवती को नवरात्र के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए मां को शक्कर का भोग प्रिय है।
    ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। इनकी उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग, सदाचार आदि की वृद्धि होती है।
    ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है। ये मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं। तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इनके अन्य नाम हैं। इनकी पूजा करने से सभी काम पूरे होते हैं, रुकावटें दूर हो जाती हैं और विजय की प्राप्ति होती है। इसके अलावा हर तरह की परेशानियां भी खत्म होती हैं। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।
    ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि

    देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें

    माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

    ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’ मन्त्र के जाप से आप माँ दुर्गा के दूसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन कर सकते हैं ।

     

    इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें।

    या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

    दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
    देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
    इसके बाद देवी मां को प्रसाद चढ़ाएं और आचमन करवाएं। प्रसाद के बाद पान सुपारी भेंट करें और प्रदक्षिणा करें यानी 3 बार अपनी ही जगह खड़े होकर

    घूमें। प्रदक्षिणा के बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। इन सबके बाद क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद बांट दें।

    प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
    या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

    अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।

  • देवी माँ के तृतीय ईश्वरीय स्वरुप का नाम माँ चन्द्रघण्टा है।
  •  चन्द्रघण्टा शब्द का क्या अर्थ है?

    चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्राय: हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं। मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला। आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते। आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग

    या देवी सर्वभू‍तेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥जब साधक माता को खुश करने के लिए ऐसा करते है तो उन्हें विचित्र तरह की खुशियों का अनुभूति होती है। आलौकिक शुगन्धियों की अनुभूति तथा कई तरह की ध्वनिया सुनाई देती है।

    गायत्री मंत्र का अर्थ, गायत्री मंत्र का महत्व और लाभ

    अतः हमें चाहिए की हम स्वच्छ मन से अपने काया को साफ रख कर माँ चंद्रघंटा की आराधना करे। इसके अलावे हम उनकी आरती भी करते है।जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा। यह आपकी छाया के समान है।चंद्रघंटा : जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है। यह उसका प्रतीक है कि माता अपने पति शिव जिन्होंने चंद्र धारण कर रखा है, वे भी उनके समान ही उनके जैसी हो चली है। हर पत्नि को अपने पति का इसी तरह साथ देना होता है।

  • मां दुर्गा का चौथा रूप ‘कूष्मांडा’

  • कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष् ’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है,जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं,देवी माँ को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ यह भी है, कि देवी माँ हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं।
  • कूष्मांडा देवी की व्रत कथा

    नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

    इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।

    माँ कूष्मांडा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नम: के जाप से आप माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप माँ कूष्मांडा की आराधना कर सकते हैं ।

    नवरात्रि की चतुर्थी को पहनें नारंगी रंग के कपड़े :

    ऐसा माना जाता है कि माँ कूष्मांडा को नारंगी रंग बहुत भाता है तो आप नारंगी रंग के वस्त्र धारण कर उनकी आराधना कर सकते हैं

    माँ स्कंदमाता :-

  • देवी माँ का पाँचवाँ रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान् कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक हैं। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति हैं , जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कंद कुमार [कार्तिकेय] की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है। भगवान स्कंद जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है।

    स्कंदमाता की पूजा विधि-

    कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है. इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए कुश अथवा कंबल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

    स्कंदमाता की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमा‍तायै नम: के जाप से आप माँ दुर्गा के पाँचवें स्वरुप माँ स्कंदमाता का आवाहन कर सकते हैं ।

    नवरात्रि की पंचमी को पहनें सफ़ेद रंग के कपड़े :

    ऐसा माना जाता है कि माँ स्कंदमाता को सफ़ेद रंग बहुत भाता है तो आप सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

  •  माँ कात्यायनी 

  • कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं. शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया. मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं.हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है, जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे। वह जो अदृश्य है, जिसे हमारी इन्द्रियां अनुभव नहीं कर सकती वह हमारी कल्पना से बहुत परे और विशाल है।सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता माँ कात्यायनी चलाती हैं। वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं, जो अदृश्य या समझ के परे है। माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं।मां कात्यायनी की कथा
    माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे. उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए. इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे. इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी. उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें. माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली. कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया. महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की. इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं

    माँ कात्यायनी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

    ॐ क्रीं कात्यायनी क्रीं नम: के जाप से आप माँ दुर्गा के छठें स्वरुप माँ कात्यायनी का आवाहन कर सकते हैं ।

    नवरात्रि की षष्ठी को पहनें लाल रंग के कपड़े :

    ऐसा माना जाता है कि माँ कात्यायनी को लाल रंग बहुत भाता है तो आप लाल रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

  • माँ के सप्तम रूप का नाम है माँ कालरात्रि।
  • माँ कालरात्रि

  • यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है।नवरात्रि में सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। ऐसी मान्यता है कि मां के इस स्वरूप की अराधना करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और शत्रुओं का भी नाश हो जाता है। माता का रंग काला होने के कारण इन्हें कालरात्रि कहा गया है। इनके तीन नेत्र हैं। इनके हाथों में खड्ग और कांटा है। साथ ही इनका वाहन गधा है। मां दुर्गा का यह रूप बेहद आक्रामक व भयभीत करने वाला होता है। कहा जाता है कि इनकी पूजा से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।पूजा विधि: हर दिन की तरह इस दिन भी सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े धारण करें। सबसे पहले गणेश जी की अराधना करें। कलश देवता की विधिवत पूजा करें। फिर माता कालरात्रि की पूजा में अक्षत, धूप, रातरानी के पुष्प, गंध, रोली, चंदन का इस्तेमाल करते हुए उनका पूजन करें। मां को पान, सुपारी भेंट करें। घी या कपूर जलाकर माँ कालरात्रि की आरती करें और कथा सुनें। इन देवी को गुड़ का भोग लगाएं।

    कथा: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दुर्गासुर नामक राक्षस कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में हमला करने की कोशिश कर रहा था। उससे निपटने के लिए देवी पार्वती ने कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह राक्षस लगातार विशालकाय होता जा रहा था। तब देवी ने अपने आप को और भी अधिक शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं। उसके बाद उन्होंने दुर्गासुर को मार गिराया। इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया।

    माँ कालरात्रि की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम: जाप से आप माँ दुर्गा के सातवें स्वरुप माँ कालरात्रि की पूजा कर सकते हैं

    नवरात्रि की सप्तमी को पहनें नीले रंग के कपड़े :

    ऐसा माना जाता है कि माँ कालरात्रि को नीला रंग बहुत पसंद है तो आप नीले रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

    प्रार्थना मंत्र: एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
    लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
    वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
    वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

    महागौरी:-

    8 सौन्दर्य का प्रतीक : माँ महागौरी

    देवी माँ का आठवाँ स्वरुप है,महागौरी।

    महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर या किनारे हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान है, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान,शांत है – पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं। यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।क्यों है,देवियों के नौ रूप?

    अष्टम महागौरी (तुलसी) – दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है, क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है।

    तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
    अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्‍नी देवदुन्दुभि:
    तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
    मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।

    माँ महागौरी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम के जाप से आप माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ महागौरी की पूजा कर सकते हैं ।

    नवरात्रि की अष्टमी को पहनें गुलाबी रंग के कपड़े :

    ऐसा माना जाता है कि माँ महागौरी को गुलाबी रंग बहुत भाता है तो आप गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

    सिद्धिदात्री:-

    देवी के नवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।

    नवरात्र-पूजन के आखिरी दिन यानि कि नवमी को दुर्गाजी की नौवीं शक्ति मां सिद्धिदात्री की उपासना होती है। इस बार नवमी 2 अप्रैल को है। देवी सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। इस दिन जो भक्त विधि-विधान और पूरी निष्ठा के साथ मां की पूजा करते हैं उन्हें सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य उनमें आ जाता है। सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मनुष्य ही नहीं, देव, गंदर्भ, असुर, ऋषि आदि सभी इनकी पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, मां सिद्धिदात्री शोक, रोग एवं भय से मुक्ति भी देती हैं। जानिए नवरात्रि के नौंवे दिन की पूजा विधि, व्रत कथा, आरती, मंत्र, मुहूर्त…

    देवी महागौरी आपको भौतिक जगत में प्रगति के लिए आशीर्वाद और मनोकामना पूर्ण करती हैं, ताकि आप संतुष्ट होकर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ें।

    माँ सिद्धिदात्री आपको जीवन में अद्भुत सिद्धि, क्षमता प्रदान करती हैं ताकि आप सबकुछ पूर्णता के साथ कर सकें। सिद्धि का क्याअर्थ है? सिद्धि, सम्पूर्णता का अर्थ है – विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना। आपके विचारमात्र, से ही, बिना किसी कार्य किये आपकी इच्छा का पूर्ण हो जाना यही सिद्धि है।

    पूजा विधि: दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। यह नौ दुर्गा का आखिरी दिन भी होता है तो इस दिन माता सिद्धिदात्री के बाद अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। सर्वप्रथम माता जी की चौकी पर मां सिद्धिदात्री की तस्वीर या मूर्ति रख आरती और हवन किया जाता है। हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से आहुति देनी चाहिए। बाद में माता के नाम से आहुति देनी चाहिए।

    मां सिद्धिदात्री की कथा: देवी पुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्र के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। इस देवी का पूजन, ध्यान, स्मरण हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।

    माँ सिद्धिदात्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम के जाप से आप माँ दुर्गा के नौवें स्वरुप माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर सकते हैं ।

    नवरात्रि की नवमी को पहनें बैंगनी रंग के कपड़े :

    ऐसा माना जाता है कि माँ सिद्धिदात्री का मनपसंद रंग बैंगनी है तो इस दिन बैंगनी रंग पहनना बहुत शुभ माना जाता है

     

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