कैसे भगवान जग्गंनाथ ने तुलसीदास को कराए उनके इष्ट के दर्शन?

कैसे भगवान जग्गंनाथ ने तुलसीदास को कराए उनके इष्ट के दर्शन?

तुलसीदास अपने इष्ट श्री राम के दर्शन की इच्छा लिए जग्गनाथ पूरी मंदिर में गए लोगो की भीड़ को देखकर वह बहुत खुष हुए लेकिन जैसे ही उन्होंने श्री जग्गनाथ जी को देखा और अचानक ही उनके चेहरे पर निराशा छा गई। मन में सोचने लगे की यह बिना हाथो के मेरे इष्ट नहीं हो सकते है। रात के समय थके हारे भूखे प्यासे एक जगह पर आराम करने लगे तभी एक बालक की आवाज सुनाई दी जो उनका ही नाम पुकार रहा था। उसने तुलसीदास जी को थाली देते हुए कहा कि लीजिये यह प्रसाद की थाली आपके इष्ट देव और जग्गनाथ जी ने आपके लिए भेजी है। तुलसीदास उसे अस्वीकार कर देते है। तब बालक कारण पुछता है। जिस पर तुलसीदास ने कहा की में अपने इष्ट को भोग लगाए बिना कुछ भी ग्रहण नहीं करता और फिर यह जग्गनाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को नहीं खिला सकता यह मेरे किसी काम का नहीं है। और बिना हाथो वाला मेरा इष्ट नहीं हो सकते। तब बालक कहता है कि आपने श्रीरामचरितमानस में तो इसी रूप का वर्णन किया है।
बिनु पद चलइ सुनह बिनु काना।।, कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना, आनन् रहित सकल रस भोगी, बिनु बानी बकता बढ़ जोगी।
यह सुनकर तुलसीदास की आँखों में आंसू मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे थाली रखकर वह बालक बोला की में ही राम हूँ। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना यह कहकर वह बच्चा अदृश्य हो गया। इसके बाद तुलसीदास ने बड़े प्रेम से प्रसाद खाया सुबह होने पर मंदिर पहुंचने पर उन्हें भगवान् जग्गनाथ बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम लक्ष्मण और माता जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवन ऐसे ही अपने भक्त की इच्छा पूरी करते है।

आज का महाउपाय-

मन की मुराद पूरी होने के लिए ऐसा क्या करें जिससे आपके जीवन की कठिनाइयां दूर हो और आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाए। पूरे घर में कपूर ,लोंग और गूगल की धूप करें। विष्णु भगवान का पंचामृत से स्नान करवा कर स्वच्छ जल से स्नान करें । धूप दीप करके बेसन का भोग लगाए। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके मंदिर में संध्या समय में घी का दीपक प्रज्वलित कर अपने मनोकामनाएं बोले।

तुलसीदास अपने इष्ट श्री राम के दर्शन की इच्छा लिए जग्गनाथ पूरी मंदिर में गए लोगो की भीड़ को देखकर वह बहुत खुष हुए लेकिन जैसे ही उन्होंने श्री जग्गनाथ जी को देखा और अचानक ही उनके चेहरे पर निराशा छा गई। मन में सोचने लगे की यह बिना हाथो के मेरे इष्ट नहीं हो सकते है। रात के समय थके हारे भूखे प्यासे एक जगह पर आराम करने लगे तभी एक बालक की आवाज सुनाई दी जो उनका ही नाम पुकार रहा था। उसने तुलसीदास जी को थाली देते हुए कहा कि लीजिये यह प्रसाद की थाली आपके इष्ट देव और जग्गनाथ जी ने आपके लिए भेजी है। तुलसीदास उसे अस्वीकार कर देते है। तब बालक कारण पुछता है। जिस पर तुलसीदास ने कहा की में अपने इष्ट को भोग लगाए बिना कुछ भी ग्रहण नहीं करता और फिर यह जग्गनाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को नहीं खिला सकता यह मेरे किसी काम का नहीं है। और बिना हाथो वाला मेरा इष्ट नहीं हो सकते। तब बालक कहता है कि आपने श्रीरामचरितमानस में तो इसी रूप का वर्णन किया है।
बिनु पद चलइ सुनह बिनु काना।।, कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना, आनन् रहित सकल रस भोगी, बिनु बानी बकता बढ़ जोगी।
यह सुनकर तुलसीदास की आँखों में आंसू मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे थाली रखकर वह बालक बोला की में ही राम हूँ। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना यह कहकर वह बच्चा अदृश्य हो गया। इसके बाद तुलसीदास ने बड़े प्रेम से प्रसाद खाया सुबह होने पर मंदिर पहुंचने पर उन्हें भगवान् जग्गनाथ बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम लक्ष्मण और माता जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवन ऐसे ही अपने भक्त की इच्छा पूरी करते है।

 

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