Padmini Ekadashi 2023:- पद्मिनी एकादशी कब मनाई जाएगी ? पद्मिनी एकादशी पूजा एवं व्रत विधि,शुभ मुहूर्त

Padmini Ekadashi 2023:-

पद्मिनी एकादशी हिन्दू धर्म में महत्वूपर्ण दिन होता है। पूरे वर्ष में 24 एकादशी होती है। परन्तु मलमास व पुरूषोत्तम मास में एकादशी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मलमास या अधिकमास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं यह एकादशी अत्यंत पुण्य दायिनी होती है। पद्मिनी एकादशी को पुरुषोत्तम एकादशी भी कहा जाता है। इसमें राधा कृष्ण तथा शिव पार्वती के पूजन का विधान है। पद्मिनी एकादशी लगभग 3 साल में एक बार आती है।

पद्मिनी एकादशी का महत्व

ऐसा माना जाता है कि पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है इसलिए इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है तथा सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है।

Padmini Ekadashi 2023:- पद्मिनी एकादशी व्रत का महत्व क्या है ?

पद्मिनी एकादशी जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी को बेहद प्रिय है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि जो व्यक्ति पद्मिनी एकादशी व्रत का पालन सच्चे मन से करता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति हर प्रकार की तप-पपस्या, यज्ञ और व्रत आदि से मिलने वाले फल के समान फल प्राप्त करता है। ऐसा कहते हैं कि सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाकर इसके माहात्म्य से अवगत करवाया था।

Padmini Ekadashi 2023:- पद्मिनी एकादशी पूजा एवं व्रत विधि क्या है ?

प्रातः स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करें
निर्जल व्रत रखकर विष्णु पुराण का श्रवण अथवा पाठ करें
रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें
रात में प्रति पहर विष्णु और शिवजी की पूजा करें
प्रत्येक प्रहर में भगवान को अलग-अलग भेंट प्रस्तुत करें जैसे- प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में नारंगी और सुपारी आदि
द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें
फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा सहित विदा करें
इसके पश्चात स्वयं भोजन करें

Padmini Ekadashi 2023:- पद्मिनी एकादशी व्रत कथा क्या है ?

त्रेयायुग में महिष्मती पुरी के राजा थे कृतवीर्य। वे हैहय नामक राजा के वंश थे। कृतवीर्य की एक हजार ​पत्नियां थीं, लेकिन उनमें से किसी से भी कोई संतान न थी। उनके बाद महिष्मती पुरी का शासन संभालने वाला कोई न था। इसको लेकर राजा परेशान थे। उन्होंने हर प्रकार के उपाय कर लिए लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। इसके बाद राजा कृतवीर्य ने तपस्या करने का निर्णय लिया। उनके साथ उनकी एक पत्नी पद्मिनी भी वन जाने के लिए तैयार हो गईं। राजा ने अपना पदभार मंत्री को सौंप दिया और योगी का वेश धारण कर पत्नी पद्मिनी के साथ गंधमान पर्वत पर तप करने निकल पड़े।

कहा जाता है कि पद्मिनी और कृतवीर्य ने 10 हजार साल तक तप किया, फिर भी पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। इसी बीच अनुसूया ने पद्मिनी से मलमास के बारे में बताया। उसने कहा कि मलमास 32 माह के बाद आता है और सभी मासों में महत्वपूर्ण माना जाता है। उसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। श्रीहरि विष्णु प्रसन्न होकर तुम्हें पुत्र रत्न अवश्य देंगे।

पद्मिनी ने मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधि विधान से किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। उस आशीर्वाद के कारण पद्मिनी के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम कार्तवीर्य रखा गया। पूरे संसार में उनके जितना बलवान कोई न था।

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